प्यारे शिव भक्तों यदि आप भी google पर जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा (Shiv chalisa jai shiv shankar odhardani in hindi lyrics) और इसकी PDF सर्च कर रहे हो तो आप बिलकुल सही वेबसाइट पर है। यहाँ जय शिव शंकर औढरदानी की लिरिक्स और पीडीएफ के साथ साथ इसके सभी पहलुओं जैसे की जय शिव शंकर औढरदानी का महत्व, औढरदानी का अर्थ और जय शिव शंकर औढरदानी का पाठ करने के फायदे पर विस्तार से चर्चा की गई है ताकि आप बेहतर तरीके से जय शिव शंकर औढरदानी का लाभ उठा सको।
जय शिव शंकर औढरदानी।
जय गिरितनया मातु भवानी ।। 1 ।।
सर्वोत्तम योगी योगेश्वर।
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर।। 2 ।।
सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता।
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता।। 3 ।।
पराशक्ति-पति अखिल विश्वपति।
परब्रह्म परधाम परमगति।। 4 ।।
सर्वातीत अनन्य सर्वगत।
निजस्वरूप महिमा में स्थितरत।। 5 ।।
अंगभूति-भूषित श्मशानचर।
भुंजगभूषण चन्द्रमुकुटधर।। 6 ।।
वृष वाहन नंदी गणनायक।
अखिल विश्व के भाग्य विधायक।। 7 ।।
व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर।
रीछचर्म ओढे गिरिजावर।। 8 ।।
कर त्रिशूल डमरूवर राजत।
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत।। 9 ।।
तनु कर्पूर-गौर उज्ज्वलतम।
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम।। 10 ।।
भाल त्रिपुण्ड मुण्डमालाधर।
गल रूद्राक्ष-माल शोभाकर।। 11 ।।
विधि-हरी-रूद्र त्रिविध वपुधारी।
बने सृजन-पालन-लयकारी।। 12 ।।
तुम हो नित्य दया के सागर।
आशुतोष आनन्द-उजागर।। 13 ।।
अति दयालु भोले भण्डारी।
अग-जग सब के मंगलकारी।। 14 ।।
सती-पार्वती के प्राणेश्वर।
स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर।। 15 ।।
हरि-हर एक रूप गुणशीला।
करत स्वामि-सेवक की लीला।। 16 ।।
रहते दोउ पूजत पूजवावत।
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत।। 17 ।।
मारूति बन हरि-सेवा कीन्ही।
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही।। 18 ।।
जग-हित घोर हलाहल पीकर।
बने सदाशिव नीलकण्ठ वर।। 19 ।।
असुरासुर शुचि वरद शुभंकर।
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर।। 20 ।।
‘नमः शिवायः’ मंत्र पंचाक्षर।
जपत मिटत सब क्लेश भयंकर।। 21 ।।
जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित।
तिनको शिव अति करत परमहित।। 22 ।।
श्रीकृष्ण तप कीन्हो भारी।
भये प्रसन्न वर दियो पुरारी।। 23 ।।
अर्जुन संग लड़े किरात बन।
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन।। 24 ।।
भक्तन के सब कष्ट निवारे।
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे।। 25 ।।
शंखचूड़ जालंधर मारे।
दैत्य असंख्य प्राण हर तारे।। 26 ।।
अन्धक को गणपति पद दीन्हों।
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों।। 27 ।।
तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं।
बाणासुर गणपति गति कीन्हीं।। 28 ।।
अष्टमुर्ति पंचानन चिन्मय।
द्वादश ज्योतिर्लिंग ज्योतिर्मय।। 29 ।।
भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा।
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा।। 30 ।।
काशी मरत जंतु अवलोकी।
देत मुक्ति पद करत अशोकी।। 31 ।।
भक्त भगीरथ की रूचि राखी।
जटा बसी गंगा सुर साखी।। 32 ।।
रूरू अगस्तय उपमन्यू ज्ञानी।
ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी।। 33 ।।
शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक।
शिवहिं परमप्रिय लोकोद्धारक।। 34 ।।
इनके शुभ सुमिरनतें शंकर।
देत मुदित हृै अति दुर्लभ वर।। 35 ।।
अति उदार करूणावरूणालय।
हरण दैन्य-दारिद्र्य-दुःख-भय।। 36 ।।
तुम्हरो भजन परम हितकारी।
विप्र शूद्र सब ही अधिकारी।। 37 ।।
बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं।
ते अलभ्य शिवपद को पावहिं।। 38 ।।
भेदशून्य तुम सब के स्वामी।
सहज-सुहृद सेवक अनुगामी।। 39 ।।
जो जन शरण तुम्हारी आवण।
सकल दुरित तत्काल नशावत।। 40 ।।
जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा का महत्व
भगवान शिव आशुतोष और औढरदानी होने के कारण वे शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों के सभी दोषों को क्षमा कर देते हैं तथा धर्म, मोक्ष, अर्थ, काम,, ज्ञान, विज्ञान के साथ अपने आपको जोड़ देते हैं।
भगवान शिव और उनका नाम समस्त मंगलों का मूल है। ज्ञान, बल, इच्छा और क्रिया – शक्ति में भगवान शिव के समान कोई नहीं है । वे सबके मील कारण. रक्षक, पालक तथा नियंता होने के कारण महेश्वर कहे जाते हैं । भगवान शिव का अंत नहीं हो सकता है इसलिए वें अनंत है।
संपूर्ण विश्व में शिवमंदिर, ज्योतिर्लिंग, स्वयंभूलिंग तथा छोटे – छोटे चबूतरों पर शिवलिंग स्थापित करके भगवान शंकर की सर्वाधिक पूजा की जाती है, यह उनकी लोकप्रियता का अद्भुत उदाहरण है।भगवती पार्वती का वाहन सिंह है और स्वयं भगवान शंकर धर्मावतार नंदी पर आरूढ़ होते हैं ।
रावण, बाण, चंडी, भृंगी आदि शिव के मुख्य पार्षद हैं । इनके द्वाररक्षक के रूप में कीर्तिमुख विराजमान हैं, इनकी पूजा के बाद ही शिव – मंदिर में प्रवेश करके शिवपूजा का विधान होता है । इससे भगवान शंकर अत्यधिक प्रसन्न होते हैं ।
औढरदानी का अर्थ
औढरदानी का मतलब किसी भी भक्त या याचक को मनचाही फल देकर निहाल कर देना होता है। यहाँ औढरदानी भगवान शिव के लिए प्रयुक्त हुआ है क्योंकि भगवान शिव मन के भोलेनाथ है उनको आसानी से प्रसन्न करके मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते है।
जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा का पाठ करने के फायदे
भगवान शिव को अत्यंत भोले स्वभाव के कारण भोलेनाथ /भोलेभंडारी नामों से भी जाना जाता है। जय शिव शंकर औढरदानी के नित्य पाठ करने से भगवान् शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।
जय शिव शंकर औढरदानी का पाठ करने से पति-पत्नी के बीच दाम्पत्य जीवन की समस्याएं दूर होती है तथा नशे की लत और तनाव से छुटकारा मिलता है।
रोजाना सवेरे स्नान करके जय शिव शंकर औढरदानी का पाठ करने से मन में साहस और शक्ति का संचार होता है, जिससे हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।
शिव शंकर औढ़रदानी का पाठ करने से संकटों और मुसीबतों से मुक्ति मिल सकती है। शिव शंकर को महाकाल भी कहा जाता है और उनकी कृपा से आप अवस्थाओं को पार कर सकते हैं और अपनी समस्याओं को हल कर सकते हैं।
जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा PDF
जय शिव शंकर औढ़रदानी को PDF फॉर्मेट में प्राप्त करने के लिए निचे दी गई लिंक पर क्लिक करे –
निष्कर्ष
प्यारे शिव भक्तों, इस प्रकार हमने जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा (Shiv chalisa jai shiv shankar odhardani in hindi lyrics) आपको हिंदी में उपलब्ध कराया है, साथ ही इनको PDF फॉर्मेट में भी उपलब्ध कराया है। इस प्रकार जय शिव शंकर औढरदानी का पाठ करके हम भगवन भोले नाथ को आसानी से प्रसन्न कर सकते है। दोस्तों ये पोस्ट आपको अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों को जरूर शेयर करे और और आपके मन में कोई सुझाव हो तो हमें कांटेक्ट या कमेंट करे।
यह भी पढ़े – 👉 शिव शंकर चले कैलाश बुंदिया पड़ने लगी लिरिक्स
जय शिव शंकर औढरदानी शिव चालीसा का You Tube पर Video भी देख सकते है –
FAQ (Frequently Asked Questions)
Q. क्या हम रोज शिव चालीसा पढ़ सकते हैं?
वैसे तो आप रोज शिव चालीसा पढ़ सकते है लेकिन भगवान शिव के वार सोमवार को पढ़ना ज्यादा फायदेमंद होता है।
Q. शिव के जहर पीने के बाद क्या हुआ?
शिव जी के जहर पिने के बाद माता पार्वती चिंतित हो गयी और माता पार्वती ने विष को उनके शरीर में प्रवेश करने से रोकने के लिए उनके कंठ पकड़ लिए जिससे विष शिव जी के गले में रह गया और नीला पड़ गया अत: तब से उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जानने लग गए।
Q. भगवान शिव कहां रहते हैं?
ऐसा माना जाता है की भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी माता पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर रहते हैं। कैलाश पर्वत वर्तमान में तिब्बत में है।
Q. भगवान शिव की 5 पुत्रियों का नाम क्या है?
भगवान शिव की 5 नाग कन्याओं का नाम जया, विषहर, शामिलबारी, देव और दोतलि है। भगवान शिव ने अपनी पुत्रियों के बारे में बताते हुए कहा कि जो भी श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी अर्थात नाग पंचमी के दिन इन नाग कन्याओं की पूजा-अर्चना करेगा, उनके परिवार को कभी सर्पदंश का डर नहीं रहेगा।