आरती (Shiv Aarti) का सामान्य अर्थ – पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति में डूब जाना होता होता है। आरती को नीराजन भी कहते है जिसका अर्थ ‘विशेष रूप से प्रकाशित करना’ होता है। अर्थात देव पूजन से प्राप्त होने वाली सकारात्मक शक्ति हमारे मन को प्रकाशित और व्यक्तित्व को उज्जवल कर दें। बिना मंत्र के द्वारा की गई पूजा में यदि आरती कर लिया जावे तो पूर्णता आ जाती है।
स्कंद पुराण में कहा गया है की यदि कोई व्यक्ति मंत्र भी नहीं जनता हो और पूजा की विधि भी नहीं जनता हो लेकिन भगवान की आरती पूरी श्रद्धा के साथ करता हो तब भी भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार कर लेते हैं।
हिन्दू धर्म में मृत्यु के देवता महादेव को प्रसन्न करने के लिए के लिए Shiv aarti (jai shiv omkara aarti), शिव भजन और शिव मंत्रों का जाप किया जाता है। कहते है की भगवान शिव की आरती (shiv aarti) के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। shiv aarti की रचना पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी ने की है।
जिनके जटाओं में गंगा है, मस्तिष्क पर चंद्रमा है, तीन नेत्र है, गले में सर्पो की माला है, शरीर पर भस्म ही उनका श्रृंगार है, जिनके बाघ की खाल ही वस्र है ऐसे भगवान भोलेनाथ का नित्य ध्यान, पूजन और उनकी आरती ( Shiv aarti) इस संसार के समस्त मनुष्यों को करनी चाहिए।
Shiv aarti in hindi – shiv ji aarti lyrics, shiv bhagwan ki aarti, shiv shankar ki aarti, om jai shiv omkara aarti lyrics , mahadev aarti lyrics
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा…॥
शिव आरती PDF –
शिवजी की आरती संस्कृत में
ॐ जय गंगाधर जय हर जय गिरिजाधीशा।
त्वं मां पालय नित्यं कृपया जगदीशा॥ हर…॥
कैलासे गिरिशिखरे कल्पद्रमविपिने।
गुंजति मधुकरपुंजे कुंजवने गहने॥
कोकिलकूजित खेलत हंसावन ललिता।
रचयति कलाकलापं नृत्यति मुदसहिता ॥ हर…॥
तस्मिंल्ललितसुदेशे शाला मणिरचिता।
तन्मध्ये हरनिकटे गौरी मुदसहिता॥
क्रीडा रचयति भूषारंचित निजमीशम्।
इंद्रादिक सुर सेवत नामयते शीशम् ॥ हर…॥
बिबुधबधू बहु नृत्यत नामयते मुदसहिता।
किन्नर गायन कुरुते सप्त स्वर सहिता॥
धिनकत थै थै धिनकत मृदंग वादयते।
क्वण क्वण ललिता वेणुं मधुरं नाटयते ॥हर…॥
रुण रुण चरणे रचयति नूपुरमुज्ज्वलिता।
चक्रावर्ते भ्रमयति कुरुते तां धिक तां॥
तां तां लुप चुप तां तां डमरू वादयते।
अंगुष्ठांगुलिनादं लासकतां कुरुते ॥ हर…॥
कपूर्रद्युतिगौरं पंचाननसहितम्।
त्रिनयनशशिधरमौलिं विषधरकण्ठयुतम्॥
सुन्दरजटायकलापं पावकयुतभालम्।
डमरुत्रिशूलपिनाकं करधृतनृकपालम् ॥ हर…॥
मुण्डै रचयति माला पन्नगमुपवीतम्।
वामविभागे गिरिजारूपं अतिललितम्॥
सुन्दरसकलशरीरे कृतभस्माभरणम्।
इति वृषभध्वजरूपं तापत्रयहरणं ॥ हर…॥
शंखनिनादं कृत्वा झल्लरि नादयते।
नीराजयते ब्रह्मा वेदऋचां पठते॥
अतिमृदुचरणसरोजं हृत्कमले धृत्वा।
अवलोकयति महेशं ईशं अभिनत्वा॥ हर…॥
ध्यानं आरति समये हृदये अति कृत्वा।
रामस्त्रिजटानाथं ईशं अभिनत्वा॥
संगतिमेवं प्रतिदिन पठनं यः कुरुते।
शिवसायुज्यं गच्छति भक्त्या यः श्रृणुते ॥ हर…॥
शिव आरती करने की विधि –
1. सर्वप्रथम आरती के लिए पीतल या तांबे की थाली ले, थाली में एक पानी का लोटा, अर्पित किए जाने वाले फूल, कुमकुम, चावल, दीपक, धूप, कर्पूर, धुला हुआ वस्त्र, घंटी, आरती संग्रह की किताब रख ले।
2. थाली में रखे दीपक में घी डालकर उसे प्रज्वलित करें, साथ ही कर्पूर को भी प्रज्वलित करें।
3. आरती अपनी बांई ओर से शुरू करके दाईं ओर ले जाना चाहिए, अर्थात घड़ी की दिशा के अनुसार घूमना चाहिए।
4. अलग-अलग देवी-देवताओं के सामने दीपक को घुमाने की संख्या भी अलग है, भगवान शिव के सामने थाली को 3 या 5 बार घुमाये।
5. आरती के दौरान om jai shiv omkara aarti गाएं और गायक या समूह को समर्थन करें।
6. भगवान शिव की आरती हो जाने के बाद लोटे में रखे जल को थाली के चारों ओर घुमाया जाना चाहिए, इससे आरती शांत होती है।
7. Shiv aarti सम्पन्न हो जाने के बाद भक्तों को आरती दी जाती है। आरती भक्तों को हमेशा अपने दाईं ओर से दी जानी चाहिए।
8. इसके बाद सभी भक्त आरती लेते हैं। आरती लेते समय भक्त अपने दोनों हाथों को नीचे से उलटा कर जोड़ते हैं और आरती पर से घुमा कर अपने माथे पर लगाते हैं।
9. जब आरती समाप्त हो जाए, तब दीपक को प्रदक्षिणा दें और उसे फिर अपनी पूजा स्थल पर रखें।
Shiv Aarti कब करनी चाहिए –
Shiv aarti मुख्यत: साप्ताहिक दिन सोमवार, मासिक त्रियोदशी तथा प्रमुख दो शिवरात्रियों को की जाती है। आरती दिन में एक से पांच बार की जा सकती है। घरों में सुबह-शाम दो बार आरती की जाती है।
आरती दीपक से क्यों करते है-
दीपक में घी की बाती जलाई जाती है और घी समृद्धि प्रदान करता है, रुखापन दूर कर सौम्यता प्रदान करता है। भगवान को अर्पित किए गए घी के दीपक का मतलब है कि जितनी सौम्यता इस घी में है, उतनी ही सौम्यता से हमारे जीवन के सभी अच्छे कार्य बनते रहे।
आरती में शंख और घंटा क्यों बजाते है–
आरती में बजने वाले शंख और घंटी की ध्वनि मधुर होती है, जिससे मन में चल रहे विचारों की उथल-पुथल कम होती जाती है तथा शरीर का रोम-रोम खिल जाता है, जिससे शरीर और ऊर्जावान बनता है।
आरती के दौरान कर्पूर क्यों जलाते है –
कर्पूर की सुगंध तेजी से वायुमंडल में फैलती है, जिससे ब्रह्मांड में मौजूद सकारात्मक शक्तियां (दैवीय शक्तियां) आकर्षित होती है और नकारत्मक उर्जा भाग जाती है।
पूजा के बाद क्यों जरूरी है आरती –
बिना आरती के कोई भी पूजा अपूर्ण मानी जाती है। इसलिए पूजा शुरू करने से पहले लोग आरती की थाल सजाकर बैठते हैं। पूजा में आरती का इतना महत्व क्यों हैं, इसका उत्तर स्कंद पुराण में मिलता है। इस पुराण में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता, लेकिन आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा को पूर्णता: स्वीकार कर लेते हैं।
किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम….मंत्र ही क्यों बोला जाता है –
इसके पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं। भगवान शिव की यह स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय भगवान विष्णु द्वारा गायी हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि शिव शमशान में रहने वाले है, उनका रुप भयंकर और अघोरी जैसा है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका रूप बहुत दिव्य है। शिव को पशुपतिनाथ भी कहते है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सभी का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गायी जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में निवास करे। शिव श्मशान में रहने वाले हैं, जो मृत्यु के भय का निवारण करते हैं।इसलिए हम चाहते है की हमारे मन में शिव निवास करें, जिससे मृत्यु का भय दूर हो।
यह भी पढ़े – 👉 नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित